Thursday, March 13, 2008

अप्रवासी भारतीय

अप्रवासी भारतीय
आदित्य प्रकाश सिंह ( डैलास, अमरीका से)
हमसे हजारों मील दूर गयाना, मारिशस, फिजी जैसे देशों में अगर हमारा देश भारत पहचाना जाता है तो उन लोगों की वजह से जिन्होंने डेढ़सो साल पहले बंधुआ मजूदर के रूप में अपनी जिंदगी शुरु की थी। मगर आज उन्हीं मजदूरों की नई पीढ़ी ने अपनी संस्कृति, परंपरा और मूल्यों को जिंदा रखते हुए पराए देश में भी एक छोटे से भारत का निर्माण कर दिया है। इनके दादा-परदादा भारत से भले ही एक मजदूर के रूप में इन देशों में गए मगर वहाँ जाकर वे मजदूरी करते हुए भी भारतीय परंपराओं, रीति-रिवाजों, मूल्यों और संस्कृति को नहीं भूले और यही वजह है कि भारतवंशियों की आज की पीढ़ी के लोगों के रोम-रोम में भारत की संस्कृति बसी हुई है। प्रस्तुत है आदित्य प्रकाश सिंह की खास रिपोर्ट।
यह बात सन १८३८ की है जब कई भारतीयों को एक जहाजी काफ़िले ने अनचाहे, गाएना की धरती पर उतारा। नयी धरती, नये लोग, अपरिचित भाषा, सब कुछ नया और अनजान था। भय चिन्ता से घिरे ये भारतीय हर रात यही सपना देखने लगे कि कब लौट पायेंगे देश। झूठे वायदे और सपनों के बीच ये बंधुआ भारतीय जीने लगा एक अनचाही जिन्दगी । आखिर देश छूटा, छूटी भाषा पर छूटा नहीं देश प्रेम। माटी की सुगन्ध इनके अन्दर कही. न कहीं अच्छी तरह बसी थी। गयाना का इतिहास इस बात की गवाही है की ना होते भारतीय मजदूर तो भूख और गरीबी से लिखा जाता गयाना का इतिहास। गयना की प्रगति भारतीयों की संघर्ष एवम कड़ी मेहनत का एक जीता जागता उदाहरण है।आज गयाना में 52% लोग भारतीय मूल के हैं जिनकी कहानी आज से करीब १६९ वर्ष पहले शुरु हुई थी। झूठे वादों और सपनो के बीच, भारतीय बंधुआ मजदूर, यही सोचते रहे कि कब देख पाएंगे फिर अपना देश। आखिर उसी काली पथरीली जमीन की कँटीली राह पर उन्होंने शुरु किया था अपना सफर, हौसलो की उड़ान के साथ। भाषा संस्कॄति बांधने लगी एक सूत्र में और चल पडा़ वही रामायण-महाभारत का अनवरत पाठ। पीढ़ी दर पीढ़ी छूटने लगी भाषा, पर छूटा नहीं संस्कॄति प्रेम। कैलाश पर्वत हो या गंगा , मन में एक आम भारतीय की तरह, वही भाव लेकर बैठे हैं। विगत डेढ़ सौ सालों से दिन को होली और रात दिवाली मनाती आ रही है गायना की भारतीय संतानें।वहाँ बसे हमारे भारतीय भाइयों की बदौलत आज गयाना में होली और दीवाली को राष्ट्रीय पर्व के रूप
में मनाया जा रहा है, जिसमें अफ्रीकी भी भारतीय परिधानों में रंगे भारतीयों के साथ मस्ती में नाचते हैं। गयाना में 5 मई का दिन भारतीय राष्ट्रीय दिवस घोषित किया गया है और अब हर साल 5 मई को इस दिन को भारतीय राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाएगा। यह वही तारीख़ थी जिस दिन पहली बार, कलकत्ता से भारतीयों को गन्ना मज़दूर के रूप में गयाना की धरती पर लाया गया था)। आज गयाना में, पचास से भी ज्यादा हिंदू मंदिर हैं। पूजा, शादियाँ, वार त्यौहार से लेकर सभी आयोजन भारतीय परंपरा के अनुसार ही होते हैं। वहाँ हिंदू और मुसलमान साथ मिल कर चलते हैं और एक दूसरे को भाई से बढ़कर समझते हैं। आज कि पीढ़ी के युवाओं से बात करें तो वे अपने को पूरा का पूरा गायनीज़ कहता है पर उनके दिल में भी भारत बसा है।आज कई भारतवंशी गायनीज़ अमेरिका में अच्छा जीवन व्यतीत कर रहें हैं पर वह आम भारतीय से कटे हुए हैं, घुल-मिल नहीं पाते हैं, मूल कारण हिंदी भाषा नहीं बोल पाना। इसमे इनका भी क्या दोष, गायना में स्कूल और कालेज में हिंदी पाठ्यक्रम नहीं रहा, साथ साथ अंग्रेजी ही बोल-चाल में थी। आज उनको यही बात खटकती है कि काश! हम भी हिंदी बोल पाते तो एक दूसरा भारत दक्षिण अमरीका में एक दूसरा भारत दिखाई देता। कई लोग किसी तरह हिंदी सीख भी लेते हैं और बोलने की कोशिश भी करते हैं मगर तो उच्चारण दोष के कारण अलग दिखते हैं। भारतीय व्यंजनों और हिन्दी फिल्मों से ये काफी जुड़े हुए हैं। गायना में हर वर्ष "सा-रे-गा-मा-पा" कि तरह "चटनी संगीत" प्रतियोगिता आयोजित की जाती है जिसमे भारतीयों के साथ-साथ अफ्रीकी भी हिंदी एंव भोजपुरी गीतों पर थिरकते नज़र आते हैं। गयाना के jaagriti.com radio द्वारा हिंदू धर्म से जुड़ी विभिन्न पारंपरिक जानकारियों, वार त्यौहारों के महत्व आदि के साथ ही प्रतिदिन रामायण पाठ का भी प्रसारण किया जाता है।डैलास रेडियो स्टेशन पर मेरे एक सह्कर्मी हैं विष्णु सुखु जो गयाना वासी हैं। इनके परदादा १८५० में गयाना में गन्ना मजदूर के रुप में आए थे, तब से कई पीढ़ी का जन्म एवम पालन-पोषण वहीं होता चला आ रहा है। विष्णु कह्ते हैं कि इनके दादा-दादी उ.प्र. के गाँव पाऊं से आए थे, दादा "बिरहा" के अच्छे गायक थे। घर में रोज रामायण पाठ होता था। विष्णु को हिन्दी बोलना-लिख्नना नहीं आता, उन्हें हिन्दी के मात्र १०-१५ शब्दों का ज्ञान है, फिर भी वे धाराप्रवाह ढंग से रेडिओ पर हिन्दी गीतों का शानदार और बेहद लोकप्रिय कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। जब उनसे पूछा गया कि यह सब वे कैसे कर
लेते हैं? तो विष्णु ने बताया कि मेरे गुरुजी ने कहा था कि पूर्व जन्म मे मैं संगीतकार था इस कारण मै भारतीय संगीत आसानी से समझ लेता हूँ। विष्णु को हिन्दी फिल्मों के कई गाने मुँह जबानी याद हैं, मुझे बडा आश्चर्य हुआ कि हिन्दी न जानने वाला कैसे हिन्दी गीतों पर आधारित यह कार्यक्रम कर रहा है। लगता है मानो पुरखों के सपने को साकार कर रहे हैं।विष्णु ने अमेरिका में पढ़ाई के बाद कई अमेरिकन कम्पनियों मे एंटरटेनमेंट मैनेजर के रुप में काम किया, कभी डीजे भी बने। लेकिन आखिरकार उनको अपना मन पसन्द काम इन्हे डैलास मे रेडियो पर गायना एवम भारत के संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत करने का मिला। उनकी शुरुआत कैरिबियन चटनी शो से हुई और फिर विष्णु शो के नाम से वे डलास में हिन्दी फिल्मों के नये और पुराने संगीत का रस घोल रहे हैं। एक विशेष बात जो कह्ते है कि इनके घर में वो पलंग आज भी है जिस पर इनके दादा पैदा हुए थे और अब तक उसी पलंग पर घर के १३ सदस्यों का जन्म हुआ है। भारतीय खानों में विष्णु को "दाल पूडी" एवम मसालेदार सब्जी पसन्द है। उन्होंने बताया कि गयाना के रेस्त्रांओं मे "दाल पूड़ी" मिल ही जाती है (वहाँ यह परम्परागत पकवान वर्षो से लोकप्रिय है)।विष्णु खुशी से बताते हैं कि गयाना ने क्रिकेट मे कई विश्व स्तर के खिलाड़ी दिये जिनमें रोहन कन्हाई, कालिचरण, चन्द्र पाल, गंगा जैसे नाम प्रमुख हैं, ये सभी भारतीय मूल के हैं। गयाना के भारत वंशी आज भी पूजा, हवन,यज्ञ, शादी आदि सब कुछ भारतीय परम्पराओं के साथ वैदिक मंत्रो से ही करते है। रामायण -महाभारत में इनकी आस्था हमारी तरह आज भी जीवंत है। विष्णु जीवन के ५० बसन्त देख चुके हैं, लेकिन उनको अफसोस है कि वे उस भारत को नहीं देख सके जहाँ उनके पूर्वजों की आत्मा बसती है। आज भी उनके मन में इस बात की गहरी अभिलाषा है कि उस गाँव पाऊं में जाएं और उन लोगों से मिलें जहाँ से उनके दादाजी जहां से दादा जी आए गयाना आए थे..........।यह सोच कर सुखद आश्चर्य होता है कि पीढी दर पीढी इनकी भाषा इनसे छूट गई मगर संस्कृति और परंपरा की धारा आज भी गंगा की तरह इनके ह्रदय पटल पर प्रवाहित हो रही है।इन सबको भारतीय संस्कृति की धारा में फलते-फूलते देख रामधारी सिंह "दिनकर" कि ये पंक्तियाँ सहज ही याद आती है:- मानचित्रों मॆ जो मिलता है, नहीं देश भारत....भू पर नही, मनों में बसता है भारत......"भारत एक भाव जिसको पाकर
मनुष्य जगता है.......".