Sunday, September 16, 2007

शृंगार है हिन्दी



रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


खुसरो के हृदय का उद्गार है हिन्दी ।
कबीर के दोहों का संसार है हिन्दी ।।

मीरा के मन की पीर बन गूँजती घर- -घर ।

सूर के सागर- सा विस्तार है हिन्दी ।।

जन-जन के मानस में ,बस गई जो गहरे तक ।
तुलसी के 'मानस' का विस्तार है हिन्दी ।।

दादू और रैदास ने गाया है झूमकर ।
छू गई है मन के सभी तार है हिन्दी ।।

'सत्यार्थप्रकाश' बन अँधेरा मिटा दिया ।

टंकारा के दयानन्द की टंकार है हिन्दी ।।

गाँधी की वाणी बन भारत जगा दिया ।
आज़ादी के गीतों की ललकार है हिन्दी ।।

'कामायनी' का 'उर्वशी’ का रूप है इसमें ।
'आँसू’ की करुण ,,सहज जलधार है हिन्दी ।।

प्रसाद ने हिमाद्रि से ऊँचा उठा दिया।
निराला की वीणा वादिनी झंकार है हिन्दी।।

पीड़ित की पीर घुलकर यह 'गोदान' बन गई ।
भारत का है गौरव , शृंगार है हिन्दी ।।

'मधुशाला' की मधुरता है इसमें घुली हुई ।
दिनकर के 'द्वापर' की हुंकार है हिन्दी ।।

भारत को समझना है तो जानिए इसको ।

दुनिया भर में पा रही विस्तार है हिन्दी ।।

सबके दिलों को जोड़ने का काम कर रही ।
देश का स्वाभिमान है ,आधार है हिन्दी ।।
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