Monday, August 27, 2007

चिन्तन

१-हमे जो मिला है;
हमारे भाग्य से ज्यादा मिला है
यदि आप के पाँव में जूते नही है;
तो अफसोस मत कीजिये
दुनिया में कई लोगोँ के पास
तो पाँव ही नहीं है।

२-चापलूस चोर होता है। वह बेवकूफ बना कर
तुम्हारा समय भी चुराता है और बुद्धि भी
- चाणक्य
3-जो लोगों की छोटी- छोटी गल्तियों को भुला नहीं
सकता वह दरिद्र आत्मा है।

4-माचिस की तीली का
सिर होता है,
पर दिमाग नहीँ,
इसलिये वह थोड़े घर्षण से
जल उठती है
हमारे पास सिर भी है और दिमाग भी।
फिर भी हम छोटी- सी बात पर
उत्तेजित क्यों हो जाते हैं।
5-मान सदा औरों को देने के लिये होता है;
औरों से लेने के लिये नहीं ।

विचार

1-ग़लती कर देना
मामूली बात है
पर उसे स्वीकार कर लेना
बड़ी बात है।
२-जो दुःख आने से पहले ही
दुःख मानता है;
वह आवश्यकता से ज्यादा
दुःख उठाता है।
३-आप के पास किसी की
निंदा करने वाला,
किसी के पास तुम्हारी
निंदा करने वाला होगा।
४-शर्म की अमीरी से
इज्जत की गरीबी
अच्छी है।

स्वतंत्रता-दिवस की झलकियाँ

श्रीमती उक़्बा अध्यक्षा महिला
कल्याण-समिति ओ ई एफ़
हज़रतपुर





ृत्य एवं समूह गान का उत्सव

स्वतंत्रता-दिवस की झलकियाँ




उद्बोधन



मिष्ठान्न-वितरण














मुख्य-अतिथि महोदय
का आगमन
















Sunday, August 12, 2007

तनाव के त्रिभुज में घिरे बच्चे

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
आज का दौर तरह-तरह के तनाव को जन्म देने वाला है ,घर-परिवार ,कार्यालय ,सामाजिक परिवेश का वातावरण निरन्तर जटिल एवं तनावपूर्ण होता जा रहा है ,इसका सबसे पहले शिकार बनते हैं निरीह बच्चे ।घर हो या स्कूल , बच्चे, समझ ही नहीं पाते कि आखिरकार उन्हें माता-पिता या शिक्षकों के मानसिक तनाव का दण्ड क्यों भुगतना पड़ता है। घर में अपने पति /पत्नी या बच्चों से परेशान शिक्षक अपने छात्रों पर गुस्सा निकालकर पूरे वातावरण को असहज एवं दूषित कर देते हैं। विद्यालय से लौटकर घर जाने पर फिर घर को भी नरक में तब्दील करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते ।यह प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण छात्रों के मन पर गहरा घाव छोड़ जाता है । कोरे ज्ञान की तलवार बच्चों को काट सकती है ,उन्हें संवेदनशील इंसान नहीं बना सकती है ।शिक्षक की नौकरी किसी जुझारू पुलिसवाले की नौकरी नहीं है,जिसे डाकू या चोरों से दो-चार होना पड़ता है ।शिक्षक का व्यवसाय बहुत ज़िम्मेदार, संवेदनशील ,सहज जीवन जीने वाले व्यक्ति का कार्य है ; मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति का कार्य- क्षेत्र नहीं है । आज नहीं तो कल ऐसे दायित्वहीन,असंवेदनशील लोगों को इस क्षेत्र से हटना पड़ेगा या हटाना पड़ेगा।प्रशासन को भी यह देखना होगा कि कहीं इस तनाव के निर्माण में उसकी कोई भूमिका तो नहीं है ?
छात्रों पर बढ़ता निरन्तर पढ़ाई का दबाव ,अच्छा परीक्षा-परिणाम देने की गलाकाट प्रतियोगिता कहीं उनका बचपन ,उनका सहज जीवन तो नहीं छीन ले रही है ?घर,विद्यालय ,कोचिंग सैण्टर सब मिलकर एक दमघोंटू वातावरण का सर्जन कर रहे हैं । बच्चे मशीन नहीं हैं ।बच्चे चिड़ियों की तरह चहकना क्यों भूल गए हैं? खुलकर खिलखिलाना क्यों छोड़ चुके हैं ?माता-पिता या शिक्षकों से क्यों दूर होते जा रहे हैं ? उनसे अपने मन की बात क्यों नही कहते ? यह दूरी निरन्तर क्यों बढ़ती जा रही है ?अपनापन बेगानेपन में क्यों बदलता जा रहा है? यह यक्ष –प्रश्न हम सबके सामने खड़ा है। हमें इसका उत्तर तुरन्त खोजना है ।मानसिक रूप से बीमार लोगों को शिक्षा क्षेत्र से दूर करना है ।मानसिक सुरक्षा का अभाव नन्हें-मुन्नों के अनेक कष्टों एवं उपेक्षा का कारण बनता जा रहा है ।क्रूर और मानसिक रोगियों के लिए शिक्षा का क्षेत्र नहीं है ।जिनके पास हज़ारों माओं का हृदय नहीं है ,वे शिक्षा के क्षेत्र को केवल दूषित कर सकते हैं ,बच्चों को प्रताड़ित करके उनके मन में शिक्षा के प्रति केवल अरुचि ही पैदा कर सकते हैं।हम सब मिलकर इसका सकारात्मक समाधान खोजने के लिए तैयार हो जाएँ ।