Thursday, March 13, 2008

जियो तो ऐसे जियो

छोटे गाँवों के छात्रों के लिए मिसाल है अजय पांडे

कहते है लहरों के डर से नौका पार नही होती, मेहनत करने वालों की कभी हार नही होती, जी हाँ आज की इस दुनिया मे भी यही मूल मंत्र काम करता है। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव गौंडा के सरकारी स्कूल से अपनी पढ़ाई करने वाले मध्यमवर्गीय नौकरीपेशा माता-पिता के एक होनहार बेटे अजय पांडेय ने गौंडा से अमरीका तक की अपनी यात्रा में इस बात को सिद्ध कर दिखाया है। अजय पांडेय की
सफलता की कहानी देश के छोटे-छोटे गाँवों में रहने वाले उन युवाओं को जरुर प्रेरणा देगी जो अभावों में, असफलता के साये में और पर्याप्त मार्गदर्शन न मिलने के कारण तमाम योग्यता होने के वावजूद अपने कैरियर को एक ऊंचाई देने में सफल नहीं हो पाते हैं। अजय पांडेय का जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर गोंडा मे हुआ। इनकी माँ विद्यावती पांडेय सरकारी स्कूल मे हिन्दी की शिक्षिका थी और पिता बैंक मे मैनेजर थे। ये दोनों अब सेवानिवृत हो चुके है । अजय की प्रांरभिक शिक्षा गाँव के ही एक सरकारी स्कूल में हुई। अजय शुरु से ही एक मेधावी छात्र थे। अजय ने विज्ञान विषय के साथ अपनी स्कूली पढ़ाई की शुरुआत की। उनके माता-पिता उनको विज्ञान की बजाय कला संकाय में पढ़ाई करवाना चाहते थे क्योंकि वे दोनों ही आर्ट्स के विद्यार्थी थे और तब गाँव में विज्ञान की पढ़ाई के लिए योग्य शिक्षक तक नहीं थे। लेकिन इसके बावजूद अजय ने जिद करके विज्ञान विषय लिया और अपना पूरा समय पढ़ाई के लिये देने लगे। अजय ने हाई स्कूल और इंटर की पढ़ाई फैजाबाद मे की। इन्होने कभी भी किसी अंग्रेजी माध्यम के प्राइवेट सकूल मे पढ़ाई नही की। दोनों ही परीक्षाएं में अजय ने उच्चत्तम अंकों से पास की और इनका नाम मेरिट लिस्ट मे भी आया। अजय अपनी मेहनत और लगन से आगे बढ़ते गए और बगैर किसी कोचिंग या सुविधा के आई आई टी प्रवेश जैसी कठिन परीक्षा पास की और इनको आईआईटी खड़गपुर मे प्रवेश मिला। इंटर के बाद अजय इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहते थे। उन्होंने आईआई टी रुड़की और एम एन आर तीनों इम्तिहान दिए पर उनका चुनाव केवल रुड़की और एम एन आर मे ही हुआ अजय को बहुत दुःख हुआ वो रुड़की नहीं जाना नही चाहते थे मगर माता-पिता की समझाईश पर रुड़की चले गए। लेकिन ३ महीने ही बीते थे कि अजय सब छोड़ के वापस घर आ गए, माँ तो अवाक् रह गई। उस दिन माँ पहली बार अजय पर गुस्सा भी हुई। अजय का कहना था कि मै जैसे भी हो मेहनत करते आई आई टी में ही उस दिन अजय ने जैसे तैसे अपने निराश, हताश और दुःखी माँ-बाप को समझाया कि वह हर हाल में आईआईटी की परीक्षा पास करेगा और अईआईटी में ही इंजीनियरिंग करेगा। फ़िर अजय ने आईआईटी की प्रवेश परीक्षा दी। जिस दिन परिणाम आना था उस दिन सुबह से ही बारिश हो रही थी।
जब अजय को पता चला की अखबार में रिजल्ट आगया है तो अजय ने बारिश की परवाह नहीं की और भारता हुए वो अखबार वाले के पास गया (क्योंकि तब अखबार की दुकान पर जाकर ही अखबार लाना पड़ता था और कभी कभी तो दुकानदार के पास भी अखबर की एक या दो प्रतियाँ ही होती थी)। इधर घर पर सभी बेसब्री से अजय का इंतजार कर रहे थे। अजय बुरी तरह से पानी में भीगता हुआ आया और चुपचाप अपने कमरे में चला गया। उसकी इस हरकत से घर के सभी लोगों के चेहरे उतर गए और वे भी उसके पीछे पीछे उसके कमरे मे गए, वहाँ देखा कि अजय ने अपना रोल नंबर कार्ड निकला और आपना रोल नम्बर देखा। इसके बाद एकदम उछलकर कहा कि मैं पास हो गया। जब घर वालों ने कहा कि यह बात तो तुम घर आकर ही बता सकते थे तो अजय ने कहा कि मै तो खुशी। डर और फैल होने की आशंका में अपना नम्बर ही भूल गया था। घर आकर यह पक्का कर लेन चाहता था कि नंबर सही है कि नहीं। आई आई टी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान ही तीसरे साल मे ही अजय को सेल रांची मे नौकरी मिल गई । वहाँ पर उनकी ईमानदारी के खूब चर्चे रहे। इसका कारण था- जब भी सेल का कोई अधिकारी या कर्मचारी से किसी काम से कहीं बाहर जाता था तो उसको खर्चे के पैसे दिए जाते थे। वापस आने पर वो व्यक्ति आपना बिल जमा करता था तो उसे जितने पैसे दिए जाते थे उनके पूरे के खर्चे का विल भी जमा कर देता था। दूसरि ओर अजय एक ऐसा व्यक्ति था जो दिए गए पैसे की अथिकांश रकम बगैर खर्च किए वापस लाकर देता था। उनकी इस आदत पर उनके इन के बॉस भी हैरान होते थे। पूछे जाने पर अजय यही कहते मै न तो शराब पीता हूँ और न नानवेज खाता हूँ और अगर बाहर जाता हूँ तो कम से कम खर्च करके अपना काम करने की कोशिश करता हूँ, इसीलिए पैसे बच जाते है। इसके बाद अजय को प्राइज वाटर हाउस कूपर मुम्बई मे नौकरी मिली। यहाँ कुछ सालों तक काम करने के बाद उन्होंने आईआईटी मुम्बई से एमबीए किया। इसी दौरान उन्हें अमेरिका की इव्र्ज कम्पनी से नौकरी का प्रस्ताव मिला और अजय ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। अजय के पूरे खानदान मे कोई कभी पहले अमेरिका नही आया था। उनके अमरीका जाने की बात को लेक माता-पिता खुश तो थे मगर अकेले बेटे को दूर भेजने से डर रहे थे, लेकिन उसके भविष्य को संवारने के लिए उन्होंने दिल पर पत्थर रखकर हाँ कर दी।
अजय ने अमरीका में अपने कैरियर की शुरुआत बोस्टन से की और आज वे डैलास की एक बड़ी कंपनी सॉफ्टवेयर कंसल्टेंट के रूप में काम कर रहे हैं। अपनी मेहनत, लगन और ईमानदारी की वजह से अजय अपने सहयोगियों के साथ ही अपने से वरिष्ठ अधिकारियों के चहेते बने हुए हैं। अजय की शादी मुम्बई की प्रीति से हुई है। अजय और प्रीति अपने बेटे सस्मित के साथ अमरीका में एक सुखी जीवन जी रहे हैं। अजय के बचपन से तीन खास दोस्त हैं अविनाश ,मनीष ,विकास इनकी बचपन की दोस्ती अभी बड़े होने तक भी कायम है। अविनाश अमेरिका मे हैं एक यूनिवर्सिटी में रिसर्चर हैं। मनीष लखनऊ मे वैज्ञानिक के पद पर हैं। वे अपने शोध कार्य के सिलसिले में जो अमेरिका भी आचुके हैं। विकास फैजाबाद मे अपना कारोबार चला रहे हैं। अमरीका में रहते हुए भी वे पने माँ पापा का बहुत धयान रखते है लगभग रोज ही फ़ोन करते है और हर साल भारत जाते है उनसे मिलने को और कभी उनको अमरीका भी बुला लेते है। यहाँ रहते हुए भी वे घर की हर छोटी बड़ी बातों का धयान रखते है। वो आपनी सफलता का श्रेय आपने माता-पिता और गुरूजनों को देते हैं। आपने कुछ शिक्षकों को वो हमेशा याद करते हैं । तिवारीजी, जो उनको फिजिक पढ़ते थे और अहमद अली सर जो केमिस्ट्री पढाते थे और प्रदीप मास्टर जी, .मंदाकनी मजुमदार जो इंजीनियरिंग मे पढाती थी, को अजय बहुत याद करते हैं। खाली समय मे ये आपना समय आपने परिवार के साथ बिताना पसंद करते हैं हिन्दी फ़िल्में कार्टून (टॉम एंड जेरी)देखना भी बहुत पसंद है। जगजीतसिंह की गजलें भी ये चाव से सुनते हैं।***(हमें यह पूरा आलेख अमरीका से अजय के एक मित्र ने भेजा है, वे नहीं चाहते थे कि अजय पांडे को इस बात का पता चले कि यह लेख किसने लिखा है। इस लेख को भेजने का उनका मकसद यही है कि हिन्दी प्रदेशों के छात्र अजय से प्रेरणा लेकर अपने कैरियर की ऊँचाई खुद तय कर सकते हैं।)

(ये लेख श्री आदित्य प्रकाश सिंह के सौजन्य से http://www.hindimidia.in/ से लिए गए हैं । )