रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
कथा–कहानियाँ इस संसार को, संसार में होने वाले परिवर्तनों को समझने का स्वाभाविक माध्यम हैं। अपने चारों तरफ वाली घटनाओं के प्रति हमारा एक निजी दृष्टिकोण होता है। उनके प्रति हम अपने भाव एवं विचार प्रकट करते हैं। कुछ बातें हमें अच्छी लगती है, तो कुछ बुरी। कथाओं के माध्यम से अच्छी बात का प्रभाव बहुत जल्दी पड़ता है। बुरे विचारों और कार्यों से बचने की शिक्षा कथाओं से अनायास मिल जाती है।
कहानी कहना और सुनना सभी को प्रिय है। जो बच्चे कहानी सुनना पसन्द करते हैं,वे कहानी कहने का भी अवसर दिया जाए तो इससे उनकी झिझक समाप्त होगी साथ ही भाषा का परिष्कार भी होगा। एक दिन बच्चों को कोई रोचक कहानी सुनाइए, परन्तु उस कहानी का अंत मत बताइए। बच्चे अगले दिन जब स्कूल आएँ, तो कहानी का अन्त सोचकर आएँ। पढ़ाई में साधारण से दिखने वाले बच्चों की कल्पना का कमाल हमको चकित कर देगा। कुछ बच्चे उस कहानी को अपने ढंग से पूरा कर लाएँगे।
अपने आसपास में घटित होने वाली घटनाओं को लिखकर लाने के लिए छात्रों से कहें। घटनाओं में कुछ जोड़कर तथा उनमें से कुछ छोड़कर कहानी लिखने के लिए कहें। छात्र इस प्रकार कहानी लिखना शुरू कर देंगे। सबसे पहले छात्रों को केवल छोटी कथाएँ लिखने के लिए कहें। बच्चों की कथाओं में सभी कथा–तत्वों को समावेश हो, यह जरूरी नहीं। फिर भी उन्हें निम्न बातों के बारे में थोड़ी–सी जानकारी जरूर दे दी जाए।
कथानक–अपने आस–पास में होने वाली या सुनी हुई घटनाओं को कथानक का रूप कैसे दिया जाए? कथानक ही पूरी कथा का आधार होता है। उसे क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित करने का अभ्यास कराया जाए।
संवाद या कथोकथन कथा को आगे बढ़ाने और रोचक बनाने के लिए संवादों का अपना विशेष महत्त्व है। कथा के पात्रों का चरित्र अच्छे संवादों से उभारा जा सकता है। जिस तरह के पात्र हों, उनके संवाद भी उसी तरह के हों तो कथा स्वाभाविक बन जाएगी।
पात्र–कथा में केवल आवश्यक पात्र होने चाहिए जिन पात्रों से कथा को आगे बढ़ने में सहायता न मिले, उनका समावेश नहीं होना चाहिए। हरेक पात्र की कुछ विशेषताएँ होती है। ये विशेषताएँ उस पात्र के कथन एवं कार्य से प्रकट होनी चाहिए।
उद्देश्य–कथाओं का उद्देश्य शिक्षा एवं मनोरंजन है। किसी कथा में ये दोनों हो सकते हैं किसी में सिर्फ़ मनोरंजन या शिक्षा। कथा में शिक्षा सीधे तौर पर नहीं आनी चाहिए। कथा पढ़ते–पढ़ते ही उसका अहसास हो जाना चाहिए।
संकेतों के आधार पर कहानी–रचना–दिए गए संकेतों के आधार पर कहानी की रचना की जा सकती है। छात्र अपनी कल्पना का समावेश करके कथा को विस्तार दे सकते हैं।
नीचे एक कथा के संकेत–सूत्र दिए जा रहे हैं–
‘पैरों के नीचे कुचली हुई पगडंडी की पीली–मटमैली घास। पगडंडी के पास की हरी–भरी घास। हरी–भरी घास पीली–मटमैली घास को उसकी कुरूपता की तरफ ध्यान दिलाती हैं मटमैली घास पगडंडी बनने से हुई। पगडंडी ने अनजान मुसाफिरों को रास्ता दिखाया। पगडंडी की घास को अपने पर गर्व है।’
कथा–‘मर मिटने का आनन्द’ उपर्युक्त संकेतों के आधार पर इस प्रकार लिखी गई–
दूर–दूर तक हरी–भरी घास फैली हुई थी। केवल पगडण्डी पर की घास लोगों के पैरो तले रौंदे जाने के कारण पीली और मटमैली दिखाई दे रही थी। हरी–भरी घास ने पगडण्डी पर की घास से कहा, ‘‘देखो, मैं कितनी सुन्दर और हरी–भरी हूँ। तुम आईने में अपनी सूरत तो देखो कैसी पीली और कुरूप हो गई हो।’’
पगडण्डी पर की पीली घास ने हरी–भरी घास बात ध्यान से सुनी और बोली ‘‘अरे बहन, जीवन की सफलता शारीरिक सौन्दर्य में नहीं; उसकी उपयोगिता पर निर्भर है। यह ठीक है कि मैं लोगों के पैरों के तले कुचल–कुचल कर बहुत कुरूप हो गई हूँ और जीवन की अंतिम घडि़याँ गिन रही हूँ लेकिन मुझे इसका तनिक भी दुख नहीं है। मेरे कुचले जाने से ही इस पगडण्डी का निर्माण हो रहा है जिससे यहाँ आने वाला हर अनजान पथिक अपनी मंजिल तक तो पहुँच सकेगा। मिट जाने में ही मेरे जीवन की सार्थकता है। मुझे अपने जीवन पर गर्व है। मैं एक शहीद की मौत मर रही हूँ। (डरे हुए लोग–सुकेश साहनी)
लेखक ने उपर्युक्त रचना किस प्रकार लिखी? या कहानी किस प्रकार स्वरूप धारण करती है? इस कथा के लेखक श्री सुकेश साहनी के शब्दों में–
‘‘बच्चों! क्या आपके मन में कहानी लिखने की बात आती है? यदि हाँ, तो फिर देर किस बात की? जिस भी घटना ने आको प्रभावित किया हो, उस पर लिखिए। प्रसिद्ध लेखकों का भी यही मत है कि कहानी अपना रास्ता खुद बना लेती है। जो भी आपके मन में है, उसे लिख डालिए। लिखने के बाद उस पर विचार किया जा सकता है। काट–छाँट,संशोधन किया जा सकता है। प्रसिद्ध लेखकों ने अनेक अमर रचनाएँ इसी प्रकार लिखी हैं। अपनी रचना की परख कैसे करें? उसके हर पहलू की जाँच कैसे करें? मैंने 1975 में ‘मर मिटने का आनन्द’ कथा लिखी थी। कैसे लिखी थी, क्यों लिखी थी, सुनिए।
मैं बस से हरदोई जा रहा था। सड़क के दोनों ओर हरी–भरी घास फैली हुई थी। पगडंडी पर एक आदमी चला जा रहा था। बस में अन्य यात्री भी थी। उन्होंने भी इस दृश्य को देखा होगा। आम आदमी के लिए इस दृश्य का कोई महत्त्व नहीं है, पर किसी लेखक के लिए यह दृश्य किसी रचना की घटना हो सकता है।
पगडंडी पर जा रहे आदमी का दृश्य बरसों तक लेखक के मस्तिष्क में सुप्त अवस्था में पड़ा रह सकता है। कहानी या कथा का भाग बनने के लिए आवश्यक है कि इस घटना को दिशा और दृष्टि मिले,लेख इस पर मनन करे, सोचे। पगडंडी पर की घास लोगों के पैरों तले कुचली जा रही थी, दम तोड़ रही थी।
इस प्रक्रिया से पगडंडी का निर्माण भी हो रहा था। लेखक कल्पना करता है कि हरी–भरी घास, पगडंडी पर की घास को नीचा दिखाने के उद्देश्य से कुछ कहती है। पगडंडी पर की घास का उत्तर महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उसका क्षणिक जीवन भी सार्थक है। मर–मिटने के बावजूद वह अपने पीछे एक पगडंडी छोड़ जाती है, जिस पर चलकर अनजान पथिक भी अपनी मंजिल पर पहुँच जाता है। इस प्रकार के विचार ही किसी रचना को उद्देश्यपूर्ण बनाते हैं। इनके बिना रचना अपूर्ण और उद्देश्यहीन हो जाती है।’’
…………
कथा–कहानियाँ इस संसार को, संसार में होने वाले परिवर्तनों को समझने का स्वाभाविक माध्यम हैं। अपने चारों तरफ वाली घटनाओं के प्रति हमारा एक निजी दृष्टिकोण होता है। उनके प्रति हम अपने भाव एवं विचार प्रकट करते हैं। कुछ बातें हमें अच्छी लगती है, तो कुछ बुरी। कथाओं के माध्यम से अच्छी बात का प्रभाव बहुत जल्दी पड़ता है। बुरे विचारों और कार्यों से बचने की शिक्षा कथाओं से अनायास मिल जाती है।
कहानी कहना और सुनना सभी को प्रिय है। जो बच्चे कहानी सुनना पसन्द करते हैं,वे कहानी कहने का भी अवसर दिया जाए तो इससे उनकी झिझक समाप्त होगी साथ ही भाषा का परिष्कार भी होगा। एक दिन बच्चों को कोई रोचक कहानी सुनाइए, परन्तु उस कहानी का अंत मत बताइए। बच्चे अगले दिन जब स्कूल आएँ, तो कहानी का अन्त सोचकर आएँ। पढ़ाई में साधारण से दिखने वाले बच्चों की कल्पना का कमाल हमको चकित कर देगा। कुछ बच्चे उस कहानी को अपने ढंग से पूरा कर लाएँगे।
अपने आसपास में घटित होने वाली घटनाओं को लिखकर लाने के लिए छात्रों से कहें। घटनाओं में कुछ जोड़कर तथा उनमें से कुछ छोड़कर कहानी लिखने के लिए कहें। छात्र इस प्रकार कहानी लिखना शुरू कर देंगे। सबसे पहले छात्रों को केवल छोटी कथाएँ लिखने के लिए कहें। बच्चों की कथाओं में सभी कथा–तत्वों को समावेश हो, यह जरूरी नहीं। फिर भी उन्हें निम्न बातों के बारे में थोड़ी–सी जानकारी जरूर दे दी जाए।
कथानक–अपने आस–पास में होने वाली या सुनी हुई घटनाओं को कथानक का रूप कैसे दिया जाए? कथानक ही पूरी कथा का आधार होता है। उसे क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित करने का अभ्यास कराया जाए।
संवाद या कथोकथन कथा को आगे बढ़ाने और रोचक बनाने के लिए संवादों का अपना विशेष महत्त्व है। कथा के पात्रों का चरित्र अच्छे संवादों से उभारा जा सकता है। जिस तरह के पात्र हों, उनके संवाद भी उसी तरह के हों तो कथा स्वाभाविक बन जाएगी।
पात्र–कथा में केवल आवश्यक पात्र होने चाहिए जिन पात्रों से कथा को आगे बढ़ने में सहायता न मिले, उनका समावेश नहीं होना चाहिए। हरेक पात्र की कुछ विशेषताएँ होती है। ये विशेषताएँ उस पात्र के कथन एवं कार्य से प्रकट होनी चाहिए।
उद्देश्य–कथाओं का उद्देश्य शिक्षा एवं मनोरंजन है। किसी कथा में ये दोनों हो सकते हैं किसी में सिर्फ़ मनोरंजन या शिक्षा। कथा में शिक्षा सीधे तौर पर नहीं आनी चाहिए। कथा पढ़ते–पढ़ते ही उसका अहसास हो जाना चाहिए।
संकेतों के आधार पर कहानी–रचना–दिए गए संकेतों के आधार पर कहानी की रचना की जा सकती है। छात्र अपनी कल्पना का समावेश करके कथा को विस्तार दे सकते हैं।
नीचे एक कथा के संकेत–सूत्र दिए जा रहे हैं–
‘पैरों के नीचे कुचली हुई पगडंडी की पीली–मटमैली घास। पगडंडी के पास की हरी–भरी घास। हरी–भरी घास पीली–मटमैली घास को उसकी कुरूपता की तरफ ध्यान दिलाती हैं मटमैली घास पगडंडी बनने से हुई। पगडंडी ने अनजान मुसाफिरों को रास्ता दिखाया। पगडंडी की घास को अपने पर गर्व है।’
कथा–‘मर मिटने का आनन्द’ उपर्युक्त संकेतों के आधार पर इस प्रकार लिखी गई–
दूर–दूर तक हरी–भरी घास फैली हुई थी। केवल पगडण्डी पर की घास लोगों के पैरो तले रौंदे जाने के कारण पीली और मटमैली दिखाई दे रही थी। हरी–भरी घास ने पगडण्डी पर की घास से कहा, ‘‘देखो, मैं कितनी सुन्दर और हरी–भरी हूँ। तुम आईने में अपनी सूरत तो देखो कैसी पीली और कुरूप हो गई हो।’’
पगडण्डी पर की पीली घास ने हरी–भरी घास बात ध्यान से सुनी और बोली ‘‘अरे बहन, जीवन की सफलता शारीरिक सौन्दर्य में नहीं; उसकी उपयोगिता पर निर्भर है। यह ठीक है कि मैं लोगों के पैरों के तले कुचल–कुचल कर बहुत कुरूप हो गई हूँ और जीवन की अंतिम घडि़याँ गिन रही हूँ लेकिन मुझे इसका तनिक भी दुख नहीं है। मेरे कुचले जाने से ही इस पगडण्डी का निर्माण हो रहा है जिससे यहाँ आने वाला हर अनजान पथिक अपनी मंजिल तक तो पहुँच सकेगा। मिट जाने में ही मेरे जीवन की सार्थकता है। मुझे अपने जीवन पर गर्व है। मैं एक शहीद की मौत मर रही हूँ। (डरे हुए लोग–सुकेश साहनी)
लेखक ने उपर्युक्त रचना किस प्रकार लिखी? या कहानी किस प्रकार स्वरूप धारण करती है? इस कथा के लेखक श्री सुकेश साहनी के शब्दों में–
‘‘बच्चों! क्या आपके मन में कहानी लिखने की बात आती है? यदि हाँ, तो फिर देर किस बात की? जिस भी घटना ने आको प्रभावित किया हो, उस पर लिखिए। प्रसिद्ध लेखकों का भी यही मत है कि कहानी अपना रास्ता खुद बना लेती है। जो भी आपके मन में है, उसे लिख डालिए। लिखने के बाद उस पर विचार किया जा सकता है। काट–छाँट,संशोधन किया जा सकता है। प्रसिद्ध लेखकों ने अनेक अमर रचनाएँ इसी प्रकार लिखी हैं। अपनी रचना की परख कैसे करें? उसके हर पहलू की जाँच कैसे करें? मैंने 1975 में ‘मर मिटने का आनन्द’ कथा लिखी थी। कैसे लिखी थी, क्यों लिखी थी, सुनिए।
मैं बस से हरदोई जा रहा था। सड़क के दोनों ओर हरी–भरी घास फैली हुई थी। पगडंडी पर एक आदमी चला जा रहा था। बस में अन्य यात्री भी थी। उन्होंने भी इस दृश्य को देखा होगा। आम आदमी के लिए इस दृश्य का कोई महत्त्व नहीं है, पर किसी लेखक के लिए यह दृश्य किसी रचना की घटना हो सकता है।
पगडंडी पर जा रहे आदमी का दृश्य बरसों तक लेखक के मस्तिष्क में सुप्त अवस्था में पड़ा रह सकता है। कहानी या कथा का भाग बनने के लिए आवश्यक है कि इस घटना को दिशा और दृष्टि मिले,लेख इस पर मनन करे, सोचे। पगडंडी पर की घास लोगों के पैरों तले कुचली जा रही थी, दम तोड़ रही थी।
इस प्रक्रिया से पगडंडी का निर्माण भी हो रहा था। लेखक कल्पना करता है कि हरी–भरी घास, पगडंडी पर की घास को नीचा दिखाने के उद्देश्य से कुछ कहती है। पगडंडी पर की घास का उत्तर महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उसका क्षणिक जीवन भी सार्थक है। मर–मिटने के बावजूद वह अपने पीछे एक पगडंडी छोड़ जाती है, जिस पर चलकर अनजान पथिक भी अपनी मंजिल पर पहुँच जाता है। इस प्रकार के विचार ही किसी रचना को उद्देश्यपूर्ण बनाते हैं। इनके बिना रचना अपूर्ण और उद्देश्यहीन हो जाती है।’’
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