Friday, April 25, 2008

विश्व पुस्तक दिवस तथा सांस्कृतिक संध्या

विश्व पुस्तक दिवस तथा सांस्कृतिक संध्या

केन्द्रीय विद्यालय आयुध उपस्कर निर्माणी हज़रतपुर में 23 अप्रैल 2008 को नेशनल बुक ट्र्स्ट इण्डिया के सहयोग से विश्व पुस्तक दिवस का आयोजन किया गया ।इस आयोजन के अन्तर्गत प्रात: 8 बजे पोस्टर प्रतियोगिता का आयोजन किया गया । प्रसिद्ध लेखक श्री पंकज चतुर्वेदी जी ने विद्यार्थियों को पोस्टर की विषयवस्तु की जानकारी दी । 64 बच्चों ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया । कनिष्ठ वर्ग में मु शोएब आलम 8 स,प्रियंका भारद्वाज 8 ब , संवर्त हर्षित 8 स संध्या 7 स वरिष्ठ वर्ग में स्वाति वर्मा 12 ,अंजलि सिंह 9 अ ,विनय प्रताप सिंह 9 अ तथा महज़बीन आलम 9 अ क्रमश: प्रथम ,द्वितीय ,तृतीय एवं चतुर्थ स्थान पर रहे ।
5-30 बजे पोस्टर प्रदर्शनी का उद्घाटन श्रीयुत महेश प्रसाद महाप्रबन्धक आयुध उपस्कर निर्माणी हज़रतपुर ने किया ।प्रदर्शिनी में बच्चों ने पुस्तक पठन –अभिरुचि को प्रोत्साहित करने वाले प्रभावशाली पोस्टर बनाकर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया । कला शिक्षिकाओं-कु प्रियंका यादव और श्रीमती पूर्णिमा बहल ने अपनी पेण्टिंग से प्रदर्शनी को और अधिक प्रभावशाली एवं सार्थक रूप प्रदान किया ।
प्रदर्शनी के उपरान्त सांस्कृतिक कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ ।सरस्वती वंदना, स्वागत गीत समूह –गान (जीवन की मुस्कान किताबें),अभिनय गीत ( हो जाओ तैयार साथियो) , कु श्रेयसी का एकल नृत्य , पुस्तकों की दुनिया ,पहाड़ी नृत्य की मन मोहक प्रस्तुति ने दर्शकों को भाव –विभोर कर दिया । कु आयुषी कक्षा 2 ने ‘सोन मछरिया जाल में’ की कविता की भावात्मक प्रस्तुति से सबको बहुत गहरे तक प्रभावित किया । श्रीमती सुदेश दत्त श्रीमती जी पी खन्ना एव संगीत शिक्षिका कु मोहिता सनाढ्य ने सांस्कृतिक कार्यक्रम को अल्प समय में अपने परिश्रम से सराहनीय बनाया । कु आकांक्षा गौतम एवं शिशिर यादव ने स्वरचित कविताओं का वाचन किया ।
श्री पंकज चतुर्वेदी जी ने नेशनल बुक ट्र्स्ट के उद्देश्यों एवं योगदान की विस्तृत जानकारी दी ।नेशनल बुक ट्र्स्ट नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित एवं श्री आबिद सुरती द्वारा गुजराती से अनूदित श्री गीजू भाई वधेका की कहानियो की 9 वीं एवं 10 वीं शृंखला ‘अमवा भैया नीमवा भैया’ तथा ‘चोर मचाए शोर’ का विमोचन विद्यालय के विद्यार्थियों -मनीष गौतम कक्षा 12 एवं आयुषी कक्षा 2 के द्वारा कराया गया । ‘श्रीमती उमा प्रसाद अध्यक्षा महिला कल्याण समिति हज़रतपुर ने पोस्टर प्रदर्शनी के विजेताओं को पुरस्कार प्रदान किए । कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रसिद्ध साहित्यकार श्री शेरजंग गर्ग एवं कथाकार श्री अमर गोस्वामी ने अपनी रचनाओं से दर्शकों को अभिभूत कर दिया । डा रामस्नेही लाल शर्मा ‘यायावर’ (फ़ीरोज़ाबाद) एवं दिनेश दोषी( टूँडला) की सरस रचनाओं का श्रोताओं ने आनन्द लिया । श्रीयुत महेश प्रसाद जी महाप्रबन्धक ओ ई एफ़ एवं अध्यक्ष विद्यालय प्रबन्ध समिति ने कार्यक्रम की भूरि-भूरि प्रशंसा की तथा इस तरह के क्रार्यक्रम को इस क्षेत्र की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि बताया; क्योंकि उत्तरप्रदेश स्तर पर केवल हज़रतपुर का इस कार्यक्रम के आयोजन हेतु चयन किया गया ।
कार्यक्रम का संचालन श्री ॠषि कुमार शर्मा ने किया धन्यवाद ज्ञापन उपप्राचार्य श्री चन्द्र देव राम ने किया ।

Sunday, April 20, 2008

विश्व पुस्तक दिवस

विश्व पुस्तक दिवस

23 अप्रैल 2008

आयोजक केन्द्रीय विद्यालय हज़रतपुर

सहयोग- नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया

(मानव संसाधन मंत्रालय भारत सरकार)

अध्यक्षता- श्रीयुत महेश प्रसाद जी महाप्रबन्धक

आयुध उपस्कर निर्माणी हज़रतपुर

कार्यक्रम:-

पुस्तक विमोचन(नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया की दो पुस्तकें),

पु्रस्कार वितरण(चित्रकला प्रतियोगिता),

सांस्कृतिक कार्यक्रम(छात्रों द्वारा)

रचना-पाठ:-( सर्वश्री अमर गोस्वामी ,शेरजंग गर्ग, पंकज चतुर्वेदी ,यायावर आदि)

इस शुभ अवसर विद्यालय प्रांगण में

5 बजे अपराह्न

आप सादर आमंत्रित हैं ।

निवेदक-

रामेश्वर दयाल काम्बोज प्राचार्य

चन्द्र देव राम उपप्राचार्य

सभी शिक्षकगण

एवं छात्रगण

Monday, April 14, 2008

एक शब्द का विभिन्न शब्द –भेदों में प्रयोग

एक शब्द का विभिन्न शब्द भेदों में प्रयोग

और-

संज्ञा- औरों का अनुकरण मत करो ।

सर्वनाम- तुम तो आ गए परन्तु और कहाँ चले गए ?

विशेषण- और रोटी लीजिए ।

अव्यय अच्छा और बुरा सभी संसार में है।

अच्छा -

संज्ञा- अच्छों का साथ करो ।

विशेषण- मोहन अच्छा लड़का है ।

क्रियाविशेषण- मोहन अच्छा गाता है ।

अव्यय अच्छा, तुम भी शैतानी कर रहे थे ।

कुछ-

संज्ञा- कुछ पढ़ रहे हैं कुछ आराम कर रहे हैं ।

सर्वनाम -इन पुस्तकों में कुछ अच्छी हैं ।

विशेषण- कुछ लोग अपनी प्रशंसा खुद करने लगते हैं।

अव्यय - कुछ कुछ बात तो ज़रूर रही होगी ।

थोड़ा-

संज्ञा थोड़ा और पढ़ लो ।

विशेषण- थोड़ा भोजन अच्छे स्वास्थ्य की निशानी है ।

क्रियाविशेषण- थोड़ा बोलो ।

……………………………………………………………

इसी प्रकार-(बुरा, ज़्यादा ,गरीब ,बड़ा) के भी विभिन्न प्रयोग होते हैं ।

---रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

Sunday, April 6, 2008

मानवीय गुण एवं समृ​द्धि

सुधा अवस्थी

संसार मे जो कुछ भी समृ​द्धि प्राप्त होती है वह मानवीय गुणों के कारण ही प्राप्त होती है । मनुष्य के बा समृ​द्धि चाहे जितनी भी हो वह सब नश्वर मिथ्या व निस्सार है । संसार में मानव से श्रेयस्कर कोई और नही है ।मनुष्य ही समग्र रहस्यों का रहस्य है़ ।दिन प्रतिदिन मनुष्य असभ्य स्वार्थी लोभी और भोगवादी होता जा रहा है।सारे मानवीय गुण ध्वस्त होते जा रहे हैं।संवेदनहीनता बढ़ रही है।चारों ओर धन की सत्ता पाशविकता का प्रभुत्व और कुटिलता का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है।मनु़ष्य मे यदि मानवीय गुण न होकर सांसारिक समृ​द्धि और समस्त सुख हो तो वह बेकार है। संसार का कोई भी व्यक्ति ऐसा नही है जिसमे थोड़ी बहुत अच्छाइयाँ न हो यानि गुण न हो।गुणों की संख्या इतनी अधिक है कि उन्हें शब्द कोष और आदमियों के मुँह नही गिन सकते हैं ।यही कारण है कि अच्छे से अच्छा आदमी भी सबके लिए अच्छा नही हो सकता है उसके लिए अधिक अच्छा बनने की गुंजाइश सदा रही है। ऊँचाई तो आसमान ही है।केवल अपने लिए या अपनों के लिए अच्छा बनना ही अच्छा होने की कसौटी नही।मूलत: दूसरों के लिए अच्छा होना ही मानवीय गुणों की पहचान होती है।

अच्छा मनुष्य ईश्वर से भी यही प्रार्थना करता है कि मेरे पास सब कुछ है और जो कुछ मेरे पास नही है उसकी आवश्यकता भी मुझे नही है। मुझे अच्छा स्वास्थ्य व बु​द्धि दे तथा दूसरों के लिए कुछ कर पाने की सामर्थ्य तथा हिम्मत दे।स्वार्थी व्यक्ति ईश्वर से भी केवल अपने लिए ही माँगता है।किसी ने ठीक ही कहा है कि खराब समय ज्यादा देर नही टिकता है ; लेकिन खराब लोग अवश्य लम्बे समय के लिए बने रहते हैं।मानवता के गुण यदि मनुष्य के अन्दर आ जाएँ तो उसकी सोच बदल जाती है।जिस तरह से दुष्ट व्यक्ति सोचता है कि गुलाब में काँटे हैं लेकिन सदगुण वाला व्यक्ति यही सोचेगा कि काँटों में गुलाब है।यानि हर व्यक्ति में कुछ न कुछ अच्छाइयाँ हैँ।कुछ व्यक्ति रोज उठते हैं और उसी ढ‍र्रे पर काम करते रहते हैं ।इस तरह कार्य करने मे आदमी बोर हो जाता है।कुछ लोग उसी कार्य को करने मे मजा ढूँढने की कोशिश करते हैं। उससे उन्हें अपने कार्य में बोरियत नही महसूस होती है।जैसे की अँधेरे को कोसने के बजाय मोमबत्तियाँ जलाकर उसके नूर से दुनिया को रोशनी देना।हमें हमेशा आगे बढ़ने की कोशिश करते रहना चाहिए।जब हमे एक सफलता हाथ लग जाए तो ठहरने के बजाय दूसरी सफलता की ओर बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।सत्य के मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए; क्योंकि सच ही सबसे शक्तिशाली है।सच शानदार है ; सच ही सुख है तथा व्यक्तिगत आजादी की दिशा में बढ़ाया एक कदम है।लेकिन इस आदत को डालने में वर्षों लग जाते हैं।लेकिन इस आदत को डालने में आत्मविश्वास खुद ब खुद बढ़ता जाता है।इसी तरह जब कोई व्यक्ति कार्य कर दे तो उसे धन्यवाद या शुक्रिया करने मे कंजूसी नहीं करनी चाहिए बल्कि दिल से चेहरे से उसी प्रकार धन्यवाद देना चाहिए जैसे अभिनेता अभिनय करते समय करता है ; क्योंकि धन्यवाद के भाव से भरा हृदय सभी गुणों का गुरु है।तथा मनुष्य को खुश रहने के लिए बहुत कुछ भूल जाना चाहिए ; क्योंकि अच्छे स्वास्थ्य और खराब याददाश्त में ही खुशियाँ बसती हैं।खराब याददाश्त हमें भूलने और माफ करने में मदद करती हैं।जिस प्रकार से गुस्सा को अंग्रेजी में एंगर कहते है और इसी में यदि डी लगा दे तो डेंजर बन जाता है।रावण अत्यन्त बुद्धिमान था ;लेकिन अपने क्रोध के कारण ही अपना सबकुछ नष्ट कर दिया।क्रोध में होने पर मनुष्य अपने कई घण्टों को नष्ट कर देता है। जिस प्रकार माचिस की तीली जरा सी रगड़ से जल उठती है ; क्योकि उसके मुख होता है पर दिमाग नहीं होता है।हमें क्रोध आने पर अपने मस्तिष्क का इस्तेमाल करना चाहिए तथा ऊपर वाले से प्रार्थना करनी चाहिए कि हमें समस्याएँ दे मगर उन्हें सुलझाने की बु​द्धि और सामर्थ्य प्रदान करें।द्रौपदी के केवल एक वाक्य कहने मात्र से(अन्धे का पुत्र अंधा) कौरव पांडव का युद्ध हुआ।हम अगर दूसरे की गलती देखकर उन पर अंगुली उठाना चाहते हैं तो हमें ऐसा तभी करना चाहिए जब हम उस काम को करने में निपुण हो अन्यथा नही उठाना चाहिए।जब हम दूसरों की गल्ती या आलोचना करते हैं तो हम अपने दुश्मन बना लेते हैं।जबकि असली ताकत गल्तियों को स्वीकार करने और खुद पर हँसने मे ही है।

मनुष्य को अपने समय का भी धन की तरह प्रबन्धन करना चाहिए तथा अपने कार्यो की प्राथमिकता तय करना चाहिए कि हमे पहले कौन से कार्य करने चाहिए।हमें जो कार्य खुशी प्रदान करें उन कार्यो को पहले करना चाहिए।जहाँ भी हमें जाना हो वहाँ पहुँचने के समय से पन्द्रह मिनट पहले पहुँचना चाहिए इससे हम तनाव रहित हो अपने कार्य के बारे मे सोच सकते है।इसी प्रकार हमें दूसरों को उपदेश देने से पहले उस बात पर खुद अमल करना चाहिए।एक पुरुष पूरा देश चला सकता है जनरल मोटर का प्रबन्धन भी कर सकता है ; लेकिन अपने पुत्र या पुत्री को सही ढंग से पाल पोस कर तैयार नही कर पाता है।यानि बेटा या बेटी बिगड़ जाने पर या उन पर नियत्रंण न रहना आपकी धन दौलत सफलता या भाग्य के भरोसे जुटाए गये हर सुख को बौना बना देते है। अन्त में यह कहना उचित होगा कि मानवीय गुण सभी समृ्द्धियों से श्रेष्ठ है।

प्रस्तुति

सुधा अवस्थी

प्राथमिक शिक्षिका

केन्द्रीय विद्यालय

ओ ई़ एफ कानपुर

Saturday, April 5, 2008

यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता

महीने का पहला दिन अर्थात् यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता की उद्‌घोषणा का दिन । इस प्रतियोगिता की यह १६वीं कड़ी है। हम लगातार प्रतिभागी कवियों और प्रतिभागी पाठकों की संख्या में वृद्धि करते जा रहे हैं। इस आशा के साथ कि इस बार भी बड़ी भारी संख्या में कवि और पाठक इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेंगे, आयोजन की सूचना लगा रहे हैं।नये पाठकों को बता दें कि 'हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' का आयोजन प्रत्येक माह होता है। कविता प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए कवियों को अपनी मौलिक तथा अप्रकाशित रचनाएँ महीने की १५ वीं तारीख तक भेजनी होती है, तथा पाठकों को पहले दिन से महीने के आखिरी दिन तक यहाँ प्रकाशित सभी प्रविष्टियों पर टिप्पणियाँ करनी होती है।

यूनिकवि बनने के लिए-

१) अपनी कोई मौलिक तथा अप्रकाशित कविता १५ अप्रैल २००८ की मध्यरात्रि तक hindyugm@gmail.com पर भेजें।

(महत्वपूर्ण- मुद्रित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाओं के अतिरिक्त गूगल, याहू समूहों में प्रकाशित रचनाएँ, ऑरकुट की विभिन्न कम्न्यूटियों में प्रकाशित रचनाएँ, निजी या सामूहिक ब्लॉगों पर प्रकाशित रचनाएँ भी प्रकाशित रचनाओं की श्रेणी में आती हैं।)

२) कोशिश कीजिए कि आपकी रचना यूनिकोड में टंकित हो।

यदि आप यूनिकोड-टाइपिंग में नये हैं तो आप हमारे निःशुल्क यूनिप्रशिक्षण का लाभ ले सकते हैं।

३) परेशान होने की आवश्यकता नहीं है, इतना होने पर भी आप यूनिकोड-टंकण नहीं समझ पा रहे हैं तो अपनी रचना को रोमन-हिन्दी ( अंग्रेजी या इंग्लिश की लिपि या स्क्रिप्ट 'रोमन' है, और जब हिन्दी के अक्षर रोमन में लिखे जाते हैं तो उन्हें रोमन-हिन्दी की संज्ञा दी जाती है) में लिखकर या अपनी डायरी के रचना-पृष्ठों को स्कैन करके हमें भेज दें। यूनिकवि बनने पर हिन्दी-टंकण सिखाने की जिम्मेदारी हमारे टीम की।

४) एक माह में एक कवि केवल एक ही प्रविष्टि भेजे।

यूनिपाठक बनने के लिए

चूँकि हमारा सारा प्रयास इंटरनेट पर हिन्दी लिखने-पढ़ने को बढ़ावा देना है, इसलिए पाठकों से हम यूनिकोड ( हिन्दी टायपिंग) में टंकित टिप्पणियों की अपेक्षा रखते हैं। टायपिंग संबंधी सभी मदद यहाँ हैं।

१) १ अप्रैल २००८ से ३० अप्रैल २००८ के बीच की हिन्द-युग्म पर प्रकाशित अधिकाधिक प्रविष्टियों पर हिन्दी में टिप्पणी (कमेंट) करें।

२) टिप्पणियों से पठनीयता परिलक्षित हो।

३) हमेशा कमेंट (टिप्पणी) करते वक़्त समान नाम या यूज़रनेम का प्रयोग करें।

४) हिन्द-युग्म पर टिप्पणी कैसे की जाय, इस पर सम्पूर्ण ट्यूटोरियल यहाँ उपलब्ध है।

कवियों और पाठकों को निम्न प्रकार से पुरस्कृत और सम्मानित किया जायेगा-

१) यूनिकवि को रु ६०० का नकद ईनाम, रु १०० की पुस्तकें और एक प्रशस्ति-पत्र।

२) यूनिपाठक को रु ३०० का नकद ईनाम, रु २०० की पुस्तकें और एक प्रशस्ति-पत्र।

३) क्रमशः दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान के पाठकों को प्रो॰ सी॰बी॰ श्रीवास्तव 'विदग्ध' और विवेक रंजन श्रीवास्तव की ओर से पुस्तकें।

४) दूसरे से दसवें स्थान के कवियों को कवयित्री डॉ॰ रमा द्विवेदी का काव्य-संग्रह 'दे दो आकाश' की एक-एक प्रति।

प्रतिभागियों से भी निवेदन है कि वो समय निकालकर यदा-कदा या सदैव हिन्द-युग्म पर आयें और सक्रिय कवियों की रचनाओं को पढ़कर उन्हें सलाह दें, रास्ता दिखायें और प्रोत्साहित करें।

प्रतियोगिता में भाग लेने से पहले सभी 'नियमों और शर्तों' को पढ़ लें।

आप भाग लेंगे तो हमारे प्रयास को बल मिलेगा, तो आइए और हमारा प्रोत्साहन कीजिए।

प्रेषक : नियंत्रक । Admin समय : 1:59 PM

चेप्पियाँ : competition, kavita, poem, poetry, pratiyogita, soochana, udghoshana, Unikavi, Unipathak

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