क्रिया-भेद [अकर्मक,सकर्मक]
क्रिया की परिभाषा- जिन शब्दों से किसी कार्य के करने,होने अथवा किसी स्थिति का बोध हो,उन्हें क्रिया कहते हैं।
[क] अकर्मक क्रिया-जिस क्रिया का फल कर्म पर नहीं, कर्ता पर पड़ता है,उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। अकर्मक क्रिया में किसी कर्म की आवश्यकता नहीं होती।यथा-
• अजीत पढ़ता है।
• बच्चा हँसता है।
अकर्मक क्रिया के भेद-
1-स्थित्यर्थक या अवस्थाबोधक पूर्ण अकर्मक क्रिया-
• प्रशान्त हँस रहा है।
• मोहन बैठा था।
• बच्चा गिर गया ।
2-गत्यर्थक [पूर्ण]अकर्मक क्रिया-
• पिताजी घर जा रहे हैं।
• पानी बह रहा है।
• पक्षी उड़ रहे हैं।
3-अपूर्ण अकर्मक क्रिया-
• बच्चा स्वस्थ हो गया।
• तुम अफसर बनोगे।
• दूकानदार चालाक निकला।
[ख] सकर्मक क्रिया
1-पूर्ण एककर्मक क्रिया
• माताजी खाना बना रहीं हैं।
• तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की।
• धरती स्वर्ग बनाना है ।
• विद्यार्थी हिन्दी पढ़ रहे हैं
2-पूर्ण द्विकर्मक क्रिया-
• खेल शिक्षक बच्चों को खो-खो खिला रहे हैं।
• प्रिया ने बिल्ली को दूध पिलाया।
• प्राचार्यजी छात्रों को हिन्दी पढ़ा रहे हैं ।
3-अपूर्ण सकर्मक क्रिया-
• आप हमारे हैं।
• जनता ने उन्हें चुना।
• मैं आपको मानता हूँ।
प्रेरणार्थक क्रिया-जब कर्ता स्वयं क्रिया नहीं करता,बल्कि एक या दो प्रेरकों की सहायता से क्रिया सम्पन्न करवाता है तो उसे प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं। जैसे-
• मालिक माली द्वारा पौधौं में पानी लगवाता है।
दादाजी मेरे छोटे भाई से पतंग उड़वा रहे हैं।
• माँ ने नौकरानी द्वारा बच्चे को दूध पिलवाया।
वाक्य प्रयोग-
चलना- अ-राकेश चलेगा।
ब-राकेश बच्चे को चलाएगा।
घूमना- अ-मैं घूमूँगा।
ब- मैं उसे घुमाऊँगा।
सोना- अ-बेटा सो गया।
ब- माँ ने बेटे को सुला दिया।
टूटना- अ-पेड़ टूट गया।
ब-तुमने पेड़ तोड़ दिया।
अव्यय-अव्यय का शाब्दिक अर्थ है-‘जो व्यय न हो’।अव्यय को अविकारी भी कहते हैं। अविकारी का अर्थ है-‘जिसमें विकार या परिवर्तन् न आए’।
अतः ऐसे शब्द जिनके रूप में लिंग, वचन, कारक, काल, पुरुष आदि के कारण कोई परिवर्तन नहीं आता,जो सदा अपने मूल रूप में बने रहते हैं, उन्हें अव्यय या अविकारी शब्द कहते हैं।
अव्यय के प्रकार-
1-क्रियाविशेषण
2-संबंधबोधक
3-समुच्चयबोधक
4-विस्मयादिबोधक
5-निपात
1- क्रियाविशेषण[Adverb]
क्रिया की विशेषता बताने वाले अव्यय शब्द क्रियाविशेषण कहलाते हैं। जैसे-
प्रतीक तेज दौड़ता है।
कोयल मीठा गाती है।
बच्चा सदैव मुस्कराता है।
क्रियाविशेषण के भेद:-
1- कालवाचक-
मैं विद्यालय प्रतिदिन जाता हूँ।
आकाश कल कानपुर जाएगा।
मेरी परसों परीक्षा है।
अच्छा अब चलता हूँ।
2- स्थानवाचक
• तुम कहाँ गए थे?
• मेरा दोस्त यहाँ रहता है।
• हम बाहर बैठेंगे।
• आतंकवादी इधर-उधर घूम रहे हैं।
3- परिमाणवाचक-
• तुम बहुत पढ़ते हो।
• कम बोला करो।
• उतना कहो जितना निभा सको।
4- रीतिवाचक-
• तुम धीरे-धीरे चलते हो।
• वह अवश्य आयेगा।
• झूठ मत बोलो।
• बम अचानक फट गया।
• चोर चुपके-चुपके चला आया।
2-संबंधबोधक[post-position]
वे अव्यय,जो संज्ञा-सर्वनाम के साथ जुड़कर उनका संबंध वाक्य के दूसरे शब्दों से बताते हैं,संबंधबोधक कहलाते हैं। जैसे-
• मेरे घर के सामने मन्दिर है।
संबंधबोधक के प्रकार-
1-क्रियाविशेषणात्मक संबंधबोधक-
• कक्षा के अन्दर बैठो।
• वह मुझसे भी तेज दौड़ता है।
अन्य संबंधबोधक अव्यय-
• 1-आज हमें शिक्षक पर्यावरण के विषय में बताएँगे।
• 2-रवि दीपक की तुलना में तेज है।
• 3-जीवन में ईमानदारी के बिना काम नहीं चलता।
3- समुच्चयबोधक [conjunction]
दो पदों, पदबंधों, वाक्यांशों अथवा उपवाक्यों को परस्पर मिलाने वाले अव्यय शब्द समुच्चयबोधक कहलाते हैं। इन्हें योजक भी कहते हैं। जैसे-
• 1-माता और पिता धरती के जीवित भगवान हैं।
• 2-तुमने मेहनत की इसलिए सफल हुए।
समुच्चयबोधक के भेद-
1- समानाधिकरण –जो अव्यय समान घटकों [शब्दों, वाक्याशों, वाक्यों] को परस्पर मिलाते हैं।
ये चार प्रकार के होते हैं-
अ-संयोजक-[और,तथा, एवं]
• फल और मिठाई ले आओ।
ब-विकल्पक[या,अथवा]
• आगरा मैं या मेरा भाई जायेगा।
स-विरोधदर्शक[पर,परन्तु,किन्तु, लेकिन,मगर,बल्कि]-
o मैंने उसे समझाया लेकिन वह नहीं माना।
द-परिणामदर्शक[नहीं तो,अन्यथा,फलतः,इसलिए, परिणामस्वरूप]-
मुझे पढ़ना है, इसलिए खेलना नहीं ।
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