Sunday, April 6, 2008

मानवीय गुण एवं समृ​द्धि

सुधा अवस्थी

संसार मे जो कुछ भी समृ​द्धि प्राप्त होती है वह मानवीय गुणों के कारण ही प्राप्त होती है । मनुष्य के बा समृ​द्धि चाहे जितनी भी हो वह सब नश्वर मिथ्या व निस्सार है । संसार में मानव से श्रेयस्कर कोई और नही है ।मनुष्य ही समग्र रहस्यों का रहस्य है़ ।दिन प्रतिदिन मनुष्य असभ्य स्वार्थी लोभी और भोगवादी होता जा रहा है।सारे मानवीय गुण ध्वस्त होते जा रहे हैं।संवेदनहीनता बढ़ रही है।चारों ओर धन की सत्ता पाशविकता का प्रभुत्व और कुटिलता का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है।मनु़ष्य मे यदि मानवीय गुण न होकर सांसारिक समृ​द्धि और समस्त सुख हो तो वह बेकार है। संसार का कोई भी व्यक्ति ऐसा नही है जिसमे थोड़ी बहुत अच्छाइयाँ न हो यानि गुण न हो।गुणों की संख्या इतनी अधिक है कि उन्हें शब्द कोष और आदमियों के मुँह नही गिन सकते हैं ।यही कारण है कि अच्छे से अच्छा आदमी भी सबके लिए अच्छा नही हो सकता है उसके लिए अधिक अच्छा बनने की गुंजाइश सदा रही है। ऊँचाई तो आसमान ही है।केवल अपने लिए या अपनों के लिए अच्छा बनना ही अच्छा होने की कसौटी नही।मूलत: दूसरों के लिए अच्छा होना ही मानवीय गुणों की पहचान होती है।

अच्छा मनुष्य ईश्वर से भी यही प्रार्थना करता है कि मेरे पास सब कुछ है और जो कुछ मेरे पास नही है उसकी आवश्यकता भी मुझे नही है। मुझे अच्छा स्वास्थ्य व बु​द्धि दे तथा दूसरों के लिए कुछ कर पाने की सामर्थ्य तथा हिम्मत दे।स्वार्थी व्यक्ति ईश्वर से भी केवल अपने लिए ही माँगता है।किसी ने ठीक ही कहा है कि खराब समय ज्यादा देर नही टिकता है ; लेकिन खराब लोग अवश्य लम्बे समय के लिए बने रहते हैं।मानवता के गुण यदि मनुष्य के अन्दर आ जाएँ तो उसकी सोच बदल जाती है।जिस तरह से दुष्ट व्यक्ति सोचता है कि गुलाब में काँटे हैं लेकिन सदगुण वाला व्यक्ति यही सोचेगा कि काँटों में गुलाब है।यानि हर व्यक्ति में कुछ न कुछ अच्छाइयाँ हैँ।कुछ व्यक्ति रोज उठते हैं और उसी ढ‍र्रे पर काम करते रहते हैं ।इस तरह कार्य करने मे आदमी बोर हो जाता है।कुछ लोग उसी कार्य को करने मे मजा ढूँढने की कोशिश करते हैं। उससे उन्हें अपने कार्य में बोरियत नही महसूस होती है।जैसे की अँधेरे को कोसने के बजाय मोमबत्तियाँ जलाकर उसके नूर से दुनिया को रोशनी देना।हमें हमेशा आगे बढ़ने की कोशिश करते रहना चाहिए।जब हमे एक सफलता हाथ लग जाए तो ठहरने के बजाय दूसरी सफलता की ओर बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।सत्य के मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए; क्योंकि सच ही सबसे शक्तिशाली है।सच शानदार है ; सच ही सुख है तथा व्यक्तिगत आजादी की दिशा में बढ़ाया एक कदम है।लेकिन इस आदत को डालने में वर्षों लग जाते हैं।लेकिन इस आदत को डालने में आत्मविश्वास खुद ब खुद बढ़ता जाता है।इसी तरह जब कोई व्यक्ति कार्य कर दे तो उसे धन्यवाद या शुक्रिया करने मे कंजूसी नहीं करनी चाहिए बल्कि दिल से चेहरे से उसी प्रकार धन्यवाद देना चाहिए जैसे अभिनेता अभिनय करते समय करता है ; क्योंकि धन्यवाद के भाव से भरा हृदय सभी गुणों का गुरु है।तथा मनुष्य को खुश रहने के लिए बहुत कुछ भूल जाना चाहिए ; क्योंकि अच्छे स्वास्थ्य और खराब याददाश्त में ही खुशियाँ बसती हैं।खराब याददाश्त हमें भूलने और माफ करने में मदद करती हैं।जिस प्रकार से गुस्सा को अंग्रेजी में एंगर कहते है और इसी में यदि डी लगा दे तो डेंजर बन जाता है।रावण अत्यन्त बुद्धिमान था ;लेकिन अपने क्रोध के कारण ही अपना सबकुछ नष्ट कर दिया।क्रोध में होने पर मनुष्य अपने कई घण्टों को नष्ट कर देता है। जिस प्रकार माचिस की तीली जरा सी रगड़ से जल उठती है ; क्योकि उसके मुख होता है पर दिमाग नहीं होता है।हमें क्रोध आने पर अपने मस्तिष्क का इस्तेमाल करना चाहिए तथा ऊपर वाले से प्रार्थना करनी चाहिए कि हमें समस्याएँ दे मगर उन्हें सुलझाने की बु​द्धि और सामर्थ्य प्रदान करें।द्रौपदी के केवल एक वाक्य कहने मात्र से(अन्धे का पुत्र अंधा) कौरव पांडव का युद्ध हुआ।हम अगर दूसरे की गलती देखकर उन पर अंगुली उठाना चाहते हैं तो हमें ऐसा तभी करना चाहिए जब हम उस काम को करने में निपुण हो अन्यथा नही उठाना चाहिए।जब हम दूसरों की गल्ती या आलोचना करते हैं तो हम अपने दुश्मन बना लेते हैं।जबकि असली ताकत गल्तियों को स्वीकार करने और खुद पर हँसने मे ही है।

मनुष्य को अपने समय का भी धन की तरह प्रबन्धन करना चाहिए तथा अपने कार्यो की प्राथमिकता तय करना चाहिए कि हमे पहले कौन से कार्य करने चाहिए।हमें जो कार्य खुशी प्रदान करें उन कार्यो को पहले करना चाहिए।जहाँ भी हमें जाना हो वहाँ पहुँचने के समय से पन्द्रह मिनट पहले पहुँचना चाहिए इससे हम तनाव रहित हो अपने कार्य के बारे मे सोच सकते है।इसी प्रकार हमें दूसरों को उपदेश देने से पहले उस बात पर खुद अमल करना चाहिए।एक पुरुष पूरा देश चला सकता है जनरल मोटर का प्रबन्धन भी कर सकता है ; लेकिन अपने पुत्र या पुत्री को सही ढंग से पाल पोस कर तैयार नही कर पाता है।यानि बेटा या बेटी बिगड़ जाने पर या उन पर नियत्रंण न रहना आपकी धन दौलत सफलता या भाग्य के भरोसे जुटाए गये हर सुख को बौना बना देते है। अन्त में यह कहना उचित होगा कि मानवीय गुण सभी समृ्द्धियों से श्रेष्ठ है।

प्रस्तुति

सुधा अवस्थी

प्राथमिक शिक्षिका

केन्द्रीय विद्यालय

ओ ई़ एफ कानपुर