रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
खुसरो के हृदय का उद्गार है हिन्दी ।
कबीर के दोहों का संसार है हिन्दी ।।
मीरा के मन की पीर बन गूँजती घर- -घर ।
सूर के सागर- सा विस्तार है हिन्दी ।।
जन-जन के मानस में ,बस गई जो गहरे तक ।
तुलसी के 'मानस' का विस्तार है हिन्दी ।।
दादू और रैदास ने गाया है झूमकर ।
छू गई है मन के सभी तार है हिन्दी ।।
'सत्यार्थप्रकाश' बन अँधेरा मिटा दिया ।
टंकारा के दयानन्द की टंकार है हिन्दी ।।
गाँधी की वाणी बन भारत जगा दिया ।
आज़ादी के गीतों की ललकार है हिन्दी ।।
'कामायनी' का 'उर्वशी’ का रूप है इसमें ।
'आँसू’ की करुण ,,सहज जलधार है हिन्दी ।।
प्रसाद ने हिमाद्रि से ऊँचा उठा दिया।
निराला की वीणा वादिनी झंकार है हिन्दी।।
पीड़ित की पीर घुलकर यह 'गोदान' बन गई ।
भारत का है गौरव , शृंगार है हिन्दी ।।
'मधुशाला' की मधुरता है इसमें घुली हुई ।
दिनकर के 'द्वापर' की हुंकार है हिन्दी ।।
भारत को समझना है तो जानिए इसको ।
दुनिया भर में पा रही विस्तार है हिन्दी ।।
सबके दिलों को जोड़ने का काम कर रही ।
देश का स्वाभिमान है ,आधार है हिन्दी ।।
$$$$$$$$