Thursday, May 17, 2007

चिन्तन

स्कूल

-सुरेश अवस्थी

उसकी अवस्था पाँच वर्ष से अधिक नहीं थी ।इससे पहले जब वह शैतानी करता था ,घर के सभी लोग हँस देते थे ।वह और शैतानी करता ,लोग और हँसते ।
वह भी खुश हो जाता ;पर उसकी वही बातें अब किसी को भी अच्छी नहीं लगतीं ।उन्हीं बातों पर घर के सभी बड़े लोग उसे डाँटते और बात –बात परा स्कूल में भरती करवा देने की धमकी देते ।
उसका नन्हा कोमल मन सोच-सोचकर थक जाता कि अब ऐसा क्यों होता है ?हर बात पर उसे स्कूल में भरती कराने की धमकी क्यों दी जाती है ?
उससे फूलदान टूट गया माँ ने डाँटा , “तू बहुत शैतान हो गया है…तेरे पापा से बोलूँगी तुझे कल ही स्कूल में भर्ती करा देंगे ।”
वह देर तक सोकर उठा , पापा ने डाँटा –“दीपू , तू बहुत आलसी हो गया है,चल तुझे स्कूल में भर्ती करा देते हैं।”वह उसने गमले से फूल तोड़ लिया । आंटी ने डाँटा ,गन्दी आदते सीख रहा है ; तेरी मम्मी से कहूँगी –तुझे जल्दी स्कूल में भर्ती करा दें।”
क्या होता है स्कूल ?उसका नन्हा मन सोचता ,उसे लगता स्कूल वह स्थान है ;जहाँ गमला तोड़ने ,फूल तोड़ने जरा-से बोलने ,देर से सोकर उठने की आदि सभी बातों की सज़ा मिलती है ।
आखिर एक दिन उसे स्कूल जाना ही पड़ा ।उसने ्स्कूल में प्रवेश करते ही कान पकड़े ।उठक –बैठक लगाते हमउम्र बच्चों को देखा ।वह सहमा-सहमा रहा और जब उसके पापा उसे छोड़कर चले गए वह चुपके – से भाग खड़ा हुआ ,अकेले ।
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